जीवन कैसे बदलता है...

एक शहर एक घर एक सड़क एक रेस्तराँ और वो एक कॉफ़ी , कब आपको काटने के लिये दौड़ जाये , अंदाज़ा लगाना मुश्किल है ।

कभी कभी लगता है एक पक्ष के भाव को इतना ठोस नहीं होना चाहिये की बाद में वो फिर द्रव्य का आकार ले ले और अंत उसका गैस में परिवर्तित होकर हो ।

मृत्यु और विरह के बाद आदमी इस बात से ख़ुद को ढाँढस बाँध लेता है की वापसी के प्रयास किये गये लेकिन वापस नहीं लाया जा सका लेकिन इन सबके बाद भी सबसे ज़्यादा कुछ दुःखदायी है तो वो है किसी का अकास्मिक विरह हो जाना , बात होते होते अचानक से संवाद का टूट जाना , फिर चूर चूर हो जाना और फिर ऐसा कुछ हो जाना जैसे कुछ था ही नहीं । बिलकुल सुन्ना.....

कभी कभी सोचता हूँ की ये सब जो हुआ इस एक दो साल में ये कितना भयावह है , ना जाने कितने झूठ बोले गये , कितने वादे किये गये और अंत में सबकुछ शून्य या उससे भी कम पर जाकर ख़त्म ।

वो समय जिसमें में सबसे ज़्यादा ख़ुश था , नाचता था , फ़्लॉंट करता था , वो समय बीत तो गया है लेकिन उसको रोज़ अभी काटता हूँ ताकि कट के ख़त्म हो जाये लेकिन ऐसा हुआ नहीं और न होगा ।

मैं ये नहीं मानता की मैं दुखी हूँ या परेशान हूँ , मैं नहीं हूँ लेकिन जो हूँ वो भी कुछ अच्छा नहीं है , फिर भी लेट इट बी।

पूरे दिन में एक घंटा ऐसा होता है जब मैं चाहता हूँ की मेरे आसपास कोई ना हो , लेकिन कोई ना कोई आ ही जाता है , सिवाय उसके .....

आगे लिखने का मन नहीं कर रहा अब , गुड नाइट ....

किसके बारे में सोचती है दोस्त
तू तो बिल्कुल बदल गयी है दोस्त

तेरी ख़ातिर तेरी ख़ुशी के लिए
मैंने सिगरेट भी छोड़ दी है दोस्त

मुझको एक चाँद से मोहब्बत थी
ज़िन्दगी बाम पर पड़ी है दोस्त

एक शिक़ायत मुझे भी है तुझसे
तू बहुत झूठ बोलती है दोस्त

तेरी तस्वीर में भी जादू है
आँख पथ्थर की हो गयी है दोस्त

~तहज़ीब हाफी

गुड नाइट अगेन दोस्तों
Dhaiyakant Mishra

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

जिदंगी के अनमोल लम्हे

Love And Breakup

South Africa Becoming Member of BRICS consequences